Copyright © 2010: BHARAT NAV NIRMAN(Evolving New India) is licensed under a Creative Commons Attribution-Noncommercial-No Derivative Works 2.5 India License. No part may be reproduced without prior permission of the author.
Saturday, December 26, 2009
Tuesday, December 15, 2009
Why we disagree?
[http://www.youtube.com/watch?v=ShrD0zjPGrs के सौजन्य से साभार ]
Swami Vivekananda
Chicago, 15th September 1893
I will tell you a little story. You have heard the eloquent speaker who has just finished say, “Let us cease from abusing each other,” and he was very sorry that there should be always so much variance.
But I think I should tell you a story which would illustrate the cause of this variance. A frog lived in a well. It had lived there for a long time. It was born there and brought up there, and yet was a little, small frog. Of course, the evolutionists were not there then to tell us whether the frog lost its eyes or not, but, for our story’s sake, we must take it for granted that it had its eyes, and that it every day cleansed the water of all the worms and bacilli that lived in it with an energy that would do credit to our modern bacteriologists. In this way it went on and became a little sleek and fat. Well, one day another flog that lived in the sea came and fell into the well.
“Where are you form?”
“I am from the sea.”
“The sea! How big is that? Is it as big as my well?” and he took a leap from one side of the well to the other.
“My friend,” said the frog of the sea, “how do you compare the sea with your little well?”
Then the frog took another leap and asked, “Is your sea so big?”
“What nonsense you speak, to compare the sea with your well!”
“Well, then,” said the frog of the well, “nothing can be bigger than my well; there can be nothing bigger than this; this fellow is a liar, so turn him out.”
That has been the difficulty all the while.
I am a Hindu. I am sitting in my own little well and thinking that the whole world is my little well. The Christian sits in his little well and thinks the whole world is his well. The Mohammedan sits in his little well and thinks that is the whole world. l have to thank you of America for the great attempt you are making to break down the barriers of this little world of ours, and hope that, in the future, the Lord will help you to accomplish your purpose.
*The Universal Wisdom के सौजन्य से साभार
Photo by Rajneesh Shukla for Bharat Nav Nirman only
Thursday, December 10, 2009
Tuesday, December 8, 2009
Monday, December 7, 2009
प्रेरक गीत
1)एक एक पग बढ़ते जायें
2)भारत को स्वर्ग बना दो
3)साधना का पथ कठिन है
4)रास्ट्र भक्ति ले ह्रदय में
Click here to go to collection of songs "प्रेरक गीत"
*Geet Ganga के सौजन्य से साभार
Sunday, December 6, 2009
गरीबों से लेकर पत्थर तक दे रहे आशा परिवार का परिचय
अमूल्य रत्नों से परिपूर्ण भारत माता का आँचल कितना पवित्र, अनोखा , वैभव शाली और गौरवशाली है यह किसी से छिपा नहीं । यह रत्नगर्भा भारतभूमि जहाँ अपने अंतर में अशंख्य मणिमुक्ताएँ छिपाए है वहीं समय - समय पर उसने ऐसे नर रत्नों को जन्म दिया जिनकी जीवनज्योति से सारा जगतीतल जगमगा उठा । जिन्होने चट्टान बनकर समाज और देश के प्रवाह को एक सही दिशा मे मोड़ दिया । जिन्होंने अपने जीवन को तिल तिल कर जलाया ताकि दूसरों को प्रकाश मिलता रहे । ऐसे कर्मठ रास्ट्र सेवक एक नहीं पैदा हुए अपितु इनकी एक विशाल मालिका है । इसी विशाल मालिका के ज्योतिर्मान और आशा परिवार से जुड़े कुछ रत्नों के बारे में परिचय दे रहे हैं भारत नव निर्माण के सहयोगी, सलाहकार और लेखक चुन्नीलाल जी अपने आलेख "गरीबों से लेकर पत्थर तक दे रहे आशा परिवार का परिचय" के द्वारा । मानव जाति के कल्याण मे समर्पित देश के ऐसे सपूतों का अभीभूत ह्रदय से अभिनन्दन- बन्दन ।
"रजनीश"
Click here to read the article "गरीबों से लेकर पत्थर तक दे रहे आशा परिवार का परिचय"
Thursday, December 3, 2009
ना हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम
Click here to go to the song "ना हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम"
*Geet Ganga के सौजन्य से साभार
Monday, November 30, 2009
भारत नव निर्माण (Evolving New India) - प्रार्थना
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें !
स्वार्थ साधना की आंधी में वसुधा का कल्याण न भूलें !!
माना अगम अगाध सिंधु है संघर्षों का पार नहीं है
किन्तु डूबना मझधारों में साहस को स्विकार नही है
जटिल समस्या सुलझाने को नूतन अनुसन्धान न भूलें !!
शील विनय आदर्श श्रेष्ठता तार बिना झंकार नही है
शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी यदि नैतीक आधार नहीं है
कीर्ति कौमुदी की गरिमा में संस्कृति का सम्मान न भूले !!
आविष्कारों की कृतियों में यदि मानव का प्यार नही है
सृजनहीन विज्ञान व्यर्थ है प्राणी का उपकार नही है
भौतिकता के उत्थानों में जीवन का उत्थान न भूलें !!
कवी - माननीय अटल बिहारी वाजपेयी
*Geet Ganga के सौजन्य से साभार
Saturday, November 28, 2009
बोल दिल्ली तू क्या कहती है ?
रामू काका अस्सी वर्ष की उमर में चाय की चुस्की के साथ ही दिन की सुरुआत करते हैं । मुनमुन बिटिया ने आज उन्हें सुबह से चाय का प्याला नहीं थमाया । सुबह से उनका मन उतरा उतरा सा है । घर में शक्कर ख़तम है क्योकि इस बार सहकारी समिति की दूकान से कई परिवारों को वितरित नहीं की गयी । वितरक ने 3 बोरी शक्कर अकेले ठाकुर साहब के परिवार को दे दी । उनकी बिटिया लाडो की महीने के दूसरे पखवार में शादी जो है ।
चुन्नू और रानी अषाढ़ के पूरे महीने स्कूल नहीं गए । शासकीय प्राथमिक विद्यालय मझियार , सीधी (म. प्र.) की छत से पानी टपकने की वजह से स्कूल के अन्दर पानी जो भरा हुआ है । मास्टर जी भी फूले नहीं समा रहे हैं और खुश क्यूँ न हों ? दोपहर में बच्चो को दिया जाने वाला अनाज उनके घर के लिए जो बच गया ।
बुढापे में नरेश काका के लिए जीविकोपार्जन का एक मात्र साधन उनकी खुद की 2 बीघा जमीन है । जब से तकरीबन आधा बीघा जमीन पटवारी साहब के नक़्शे से गुम हुई है वो आये दिन कचहरी के चक्कर लगाते रहते हैं । जमीन से ज्यादा की कीमत तो वो पेशकार को खिला चुके हैं पर पता नहीं कब न्याय मिलेगा ?
जब भ्रस्टाचार का दर्द मुझसे देखा नहीं गया तो मैंने दिल्ली से पूंछा की इस पर तू क्या कहती है ? दिल्ली ने सीना फुलाकर कहा मैं तो अपना काम इमानदारी से करती हूँ । नीचे के लेवल पर मेरी योजनाओं का क्रियान्वयन सही तरीके से होता नहीं । मुझे इसकी जानकारी बढ़िया से नहीं होती कि राज्य और पंचायतें किस तरह घपला करती हैं । दिल्ली की बातें सुनकर मुझे सुकून मिला कि चलो बापू की शहीद भूमि में तो राम राज्य जीवित है । आखिर पूरे देश से चुनकर आये कर्मठ रास्ट्र सेवक जो यहाँ निवाश करते हैं । मै इस इरादे से लौटने वाला था कि वापस जाकर अपने क्षेत्र के लोगों का दिल्ली के प्रति झूठे भ्रम को तोडूंगा । इसकी इमानदारी का गुणगान करके लोगों का नेताओं के प्रति खोया विश्वाश पुनर्जीवित करूँगा । लेकिन यह क्या ? यह सुबह सुबह कैसी खबर पढ़ रहा हूँ ? दिल्ली नगर निगम में बिना अस्तित्व के हजारो वेतन भोगी ? काल्पनिक कर्मचारियों को करोड़ो का वेतन ? दिल्ली ऐसे 22,853 कर्मचारियों को तनख़्वाह दे रही है जिनका वजूद ही नहीं है ।
मुझे अपने भोलेपन पे तरश आया कि कैसे दिल्ली ने दिन के उजाले में मुझसे अपना असली चेहरा छिपाया । ट्रेन दिल्ली से 2 घंटे की दूरी तय कर चुकी थी । अखबार को साथ की बर्थ में बैठे एक सज्जन को थमा कर बाहर के नज़ारे देखने लगा । मै मन ही मन सोच रहा था कि पंचायत और जनपद से क्या कहूंगा ? यही कि तुम लोग पैसे लिए बिना काम नहीं करते और दिल्ली तो पैसे लेकर भी काम नहीं करती ।
Thursday, November 26, 2009
Launching The Logo For "Bharat Nav Nirman"
Designed by: Dinesh Chandra Varshney , Rajneesh Shukla & Vishwjeet Kumar
"Rajneesh"
Saturday, November 21, 2009
आल्हा :हिरोशिमा दिवस- ६ अगस्त (एटम बम की शिकार बालिका सडाको की दास्तान)
चुन्नीलाल जी झोपड़ पट्टी में निवास करने वाले गरीबों की स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और उनके बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष व उनके बच्चों की शिक्षा के लिए काम करते हैं । आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता तथा भारत नव निर्माण के सहयोगी, सलाहकार वा अतिथि लेखक हैं ।
आल्हा, 6 अगस्त 1945 को जापान देश के हिरोशिमा शहर पर अमेरिका द्वारा किये गए परमाणु बम के हमले में लाखों लोगों की जान जाने और वहां बचे लोगों को खून का कैंसर होने, की याद दिलाता है ताकि जापान की एक बालिका की तरह लोग खून के कैंसर का शिकार न हों और परमाणु बम, मिसाइल, बारूद जैसी चीजें जो मानव,पर्यावरण,पशु-पक्षी,जीव-जंतु सभी के लिए प्राण घातक हैं, लोग इनका विरोध करें । चुनीलाल जी द्वारा दिया गया शांति सन्देश 18 अगस्त 2009 को "सिटिज़न न्यूज़ सर्विस " में भी प्रकाशित हुआ है । भारत नव निर्माण के द्वारा यह सन्देश जन-जन तक पहुचाने में प्रशन्नता का अनुभव हो रहा है । चुन्नीलाल जी का भारत नव निर्माण के सयोगी , सलाहकार वा अतिथि लेखक के रूप में हार्दिक अभिनन्दन बंदन ।
Click here to read poem "AALHA"
Tuesday, November 10, 2009
अमन चैन
मुक्त धरा बस एक था सपना चाहे हिन्दू या मुसलमान
मिलजुल रहे दोनों समुदाय आजादी थी एक लड़ाई
एकजुट होकर डटे रहे तो स्वतंत्र रास्ट्र की संज्ञा पाई
जाति अलग हो धर्म अलग हो भेष-भूषा रहन-सहन अलग हो
मानव तो मानव ही होता देश अलग हो खान-पान अलग हो
मानव से मानव के विरोध का जन्मजात नही कोई आधार
पर सत्ता के लोभी जन करते मन में खड़ी अंतर की दीवार
ए तेरा वो मेरा का ही जाप हमेसा करते रहते
वैचारिक मतभेदों वाली जीभ ना रुकती कहते कहते
छोटी सी बात सुलझाने वाली बड़ा मुद्दा बन जाती है
बिना वजह और बिना बिचारे नफ़रत घर कर जाती है
सत्ता की रोटी की खातिर मन में आग लगाई जाती है
भले बुरे का भेद मिटाकर सत्ता की भूख मिटाई जाती है
भारत पाक की जेलों में हजारों एक दूसरे के नागरिक
मानवता से परे झेलते मानसिक शारीरिक कष्ट अनैतिक
कूटनीति की चालों पर कुछ जेलों से छोड़े जाते हैं
पर समय के जाते उसी तादात में फिर से पकड़े जाते हैं
सिग्नल पे जब लाल हो बत्ती तो रुकता हर गाड़ी वाला
रंग बिरंगी चिडियों को पकड़े पास में आता पिजड़े वाला
अभी आजाद करुँ मैं इनको बाबू जी दे दो इतने दाम
ए दुआएं देंगे तुमको सुधरेंगे सारे बिगड़े काम
कभी कोई बड़ा दिल वाला बातों में पड़ जाता है
पंछियों को आजाद कराके वो आंगे बढ़ जाता है
चिड़ीपकड़ के अपने शागिर्द फिर से जाल बिछाते हैं
छोड़े गए अधिकतर पंछी फिर से पकड़े जाते हैं
कहे रजनीश हम सब आपसी सदभाव ना भूलें
दिल में प्रेम बड़ा लाजिमी तो शरहद को भूलें
भारत-पाक में फर्क मिटाकर आओ मिलजुल गायें
अमन चैन का बिगुल बजाकर भारत नया बनाएं
"रचयिता - रजनीश शुक्ला, रीवा (म. प्र.)"
Wednesday, October 14, 2009
Thursday, October 1, 2009
अब पंचायतों में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण
"रजनीश"
Wednesday, September 30, 2009
डॉ संदीप पाण्डेय एक सामाजिक कार्यकर्ता
"रजनीश"
Click here to watch vedio
Friday, September 25, 2009
मंदबुद्धि बच्चा अभिशाप नहीं है
प्रस्तुत द्वारा: चुन्नीलाल (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
मैंने हमेसा से इस बात पर जोर दिया है की बच्चे एक फूल की तरह होते हैं । यदि उन्हें सही environment ना मिले तो यह फूल मुरझा सकता है । जिस तरह से पांच अंगुलियाँ बराबर नहीं होती, उसी तरह हर बच्चे एक सामान नहीं होते पर हमारी यह जिम्मेदारी है कि देश रूपी चमन का हर एक फूल अपनी प्रकृति के अनुसार खिले और रौनक बढाये । हमें इसके पौधे को समुचित रूप से खाद और पानी तो देना चाहिए पर इसके nature से छेड़ छाड़ नहीं करनी चाहिए । बच्चा स्वयं ही एक अच्छे स्वरुप को प्राप्त कर लेगा । "मंदबुद्धि बच्चा अभिशाप नहीं है!" यह लेख सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (CNS) में 19 सितम्बर 2009 को प्रकाशित हुई । आप इसे CNS की वेबसाइट से पढ़ सकते हैं ।
"रजनीश"
Click to read the article
एक गांव के सामूहिक संघर्ष की प्रेरणादायक कहानी
लेखकः संदीप पाण्डेय
यह कहानी सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (CNS) में ५ सितम्बर २००९ को प्रकाशित हुई । पाठक गण इस कहानी को CNS की वेबसाइट से पढ़ सकते हैं । यह कहानी उदहारण है :कैसे गांव और देश की जनता विभिन्न चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बन सकती है ।
Click to read the story
Wednesday, September 2, 2009
मुखिया रामदीन
लेखकः रजनीश शुक्ला ,रीवा (म. प्र.)
गांवों की पंचायती राज व्यवस्था की पोल खोलता एक व्यंग्य । इसमें मुखिया रामदीन को एक ऐसे दीमक के रूप में चित्रित किया गया है जो गांव की संस्कृति को चट कर रहा है ।
Click to read entire content
Sunday, August 23, 2009
अतीत
मैं अकिंचन करुँ निवेदन माँ शारदे आओ चिंतन में
भारतीय संस्कृति प्राचीनतम सबसे प्राचीन है भाषा संस्कृत
मिश्र रोमा यूनान का पतन पर हिंद संस्कृति अभी भी जीवित
वेदों में सब ज्ञान की बातें अपने वेदों पर हमको है मान
चीन को किसने सभ्य बनाया देकर उनको कपडो का ज्ञान
आर्यभट ने पहले सिखलाया गणित में शून्य बड़ा अनमोल
वराहमिहिर ने पहले बतलाया देखो यह पृथ्वी है गोल
आदिकाल से करते आये नौ ग्रहों की पूजा हम रोज
बाकी दुनिया वालो सुन लो बाद में की तुमने यह खोज
दुनिया में आयुर्वेद जो लाये वो थे अपने चरक महान
द्रुत करती सारी गणनाएं वैदिक गणित बड़ी आसान
अमृतसर में सोने का मंदिर सकल विश्व में भारत की शान
कोहिनूर नहीं साधारण हीरा अपितु जगत में भारत की आन
नालंदा और तक्षशिला पूरी दुनिया में थे जाने जाते
संपूर्ण विश्व से विद्यार्थी भारत में थे पढने आते
फाह्यान चीनी विद्यार्थी लिखे अद्वितीय भारत का वैभव
दुनिया तो दुनिया जैसी पर भारत एक अनोखा अनुभव
भारत एक सोने की चिडिया चन्द्रगुप्त का था जब शाशन
घरों में न तालों का प्रचलन देश में था इतना अनुशाशन
अतीत हमारा गौरव शाली जरूरी इसकी गरिमा का ज्ञान
कला और संस्कृति के दम से ही विश्व में है होती पहचान
कहे रजनीश अभी समय है हम अपना अस्तित्व न भूलें
अतीत हमारा गौरव शाली सब जन मिलकर बोलें
आज और कल का भेद भुलाकर आओ मिल जुल गायें
अतीत के गौरव को दुहराकर भारत नया बनायें
रचयिता:"रजनीश शुक्ला, रीवा(म. प्र।)"
*Photo by Dinesh Chandra Varshney for Bharat Nav Nirman Only
Wednesday, August 19, 2009
एक बात कहूँ
सोचता हूँ कैसे कहूँ
चलो बात की बात से कहता हूँ
एक बात ही दिल तोड़ देती है
एक बात ही दिल जोड़ देती है
अरे यह बात तो बात है,
एक बात ही जीवन मोड़ देती है
दोस्तों एक बात कहूँ
सोचता हूँ कैसे कहूँ
चलो बात की बात से कहता हूँ
बात निकलेगी तो फिर दूर तक जायेगी
बात न निकले तो फिर अपना पता पूछेगी
बात का मतलब हो या ना हो बात ही कहलाएगी
दोस्तों एक बात कहूँ
सोचता हूँ कैसे कहूँ
जीवन में कई बातो का आना होगा
एक वह बात और पीछे सारा ज़माना होगा
तुम ज़माने की बातो से मतलब ना रखना
बात कैसी भी हो हर हाल में खुश रहना
रचयिता:"रजनीश शुक्ला, रीवा (म. प्र.)"
Monday, August 17, 2009
अबोध
पशु पक्षी पावक पवन जन जन में बसते भगवन
जल थल नभ में सबका पालन प्रबल प्रकृति में रहे संतुलन
दशो दिशाओं उनका शाशन हम सब उनकी प्रजा समान
जो सब दिखता उनकी रचना बच्चे हैं उनका वरदान
भागम भाग न भागे जीवन तो हो जाये उथल पुथल
बेटे आज समय नहीं है कह लेना सब बाते कल
भावो का अम्बार तो क्या छोटी उसकी अभी उमर
बात वजह की पर बोले कैसे मन जो बैठा है डर
काम तो होगा नाम तो होगा न होगा यह बचपन पर
चमन में है रौनक जिनसे बुझने ना पायें तारे जमीं पर
छोटी उमर में जीना मुश्किल कर आया जिम्मेदारी बनकर
उचित नहीं फुर्सत हो जाना आवासीय विद्यालय भेजकर
पॉँच अंगुलियाँ नहीं बराबर पर महत्व कम नहीं रत्ती भर
हर बच्चा जन्म है लेता जन्मजात कुछ प्रतिभा लेकर
हर जन्मे को जिंदगी अपनी जीने का जन्मसिद्ध अधिकार
पर परम्परा परिवार नाम पर होता उनपर अत्याचार
मेरे पालक उपकार बड़ा हो जो पढ़ पाओ मेरा मन
मै तो हूँ मिट्टी कुम्हार की बनाओ गाँधी या वीरप्पन
जीवन तो जीवन न था मन में प्रतिशोध तो भारी है
बेटे अनुभव तो मेरा है पर अब यह तेरी बारी है
निज जीवन में जो हो न पाया बेटे के जीवन से आशा
मेरे अभिभावक मै अबोध हूँ समझो मेरे मन की भाषा
कहे रजनीश अभी है हम इनसे इनका समय न छीने
भविष्य देश का इनके हांथों दे जी भर इनको जीने
छोटे बड़े का भेद मिटाकर आओ मिल जुल गायें
पढ़ अबोध के मन की भाषा भारत नया बनाये
रचयिता:"रजनीश शुक्ला, रीवा (म. प्र.)"
*Photo by Rajneesh Shukla for Bharat Nav Nirman only
ग्रामोदय
कश्मीर से रामेश्वर तक फैला भारत मेरा पावन देश
भेष-भूसा रहन- सहन खान-पान विविधता विशेष
कलकल करती नटखट नदियाँ विस्तृत समतल धरा अपार
कश्मीर में है केशर की खेती तो बस्तर में वन का विस्तार
आर्यवर्त गावों का देश मिल जुल कर रहे सकल समुदाय
मेहनत से उगता है मोती खेती इसका मुख्य व्यवसाय
गाँव हमारे विश्व मंच पर कृषि प्रधान होने का कारण
यदि गाँव न होते कृषक न होते न होता जनता का पोषण
यदि गाँव में मिलती बिजली पानी और जीविका का साधन
पक्की होती कच्ची सड़कें तो निर्धन जन क्यूँ करें पलायन
कितने ही वादे किये गए नदी पे पुल पर बने नहीं
गिन चुनकर रिश्वत लेकर बने तो फिर वो टिके नहीं
वर्षो बीते शोषण में जीते तब आया पंचायती राज
अवसर धन की कर पहचान ग्रामजन करें स्वयं ही राज
अनपढ़ अनगढ़ बुझी बुझी सी है यह जनता लाचार
प्रबुद्ध प्रखर बन कैसे समझापाती अपने अधिकार
आन पड़ी विपदा बड़ी पर चिकित्सालय तो दूरी है
कैसे करें धन का उपाय तो वाहन भी मजबूरी है
गाँव के नन्हे मुन्हे बच्चे जब मीलों पैदल चलते हैं
तब जाकर शिक्षा के अक्षर उनके दामन पड़ते हैं
कहे रजनीश अभी वक़्त है हम अपना कर्त्तव्य न भूलें
जब जड़े हमारी गाँवो में तो थोडा समय निकालें
गाँव शहर का भेद मिटाकर आओ मिल जुल गायें
ग्रामोदय का बिगुल बजाकर भारत नया बनायें
रचयिता:"रजनीश शुक्ला, रीवा (म. प्र.)"
आजाद भारत
बीती निशा निरंतर निद्रा सोये थे फिरंगियों के भ्रम में
पुलकित जन नव रवि को नमन नव स्वपन मन चेतन नव
स्वशाषित आर्यवर्त में गूंज उठा स्वतंत्रता का स्वर नव
एकत्रित हुए रात दिन बना संविधान हुआ गणतंत्रता का गठन
जनहित में जनता द्वारा जनता के लिए जनता का शाशन
प्रशस्त हुआ प्रगति का पथ पर रह रह के उठे कई सवाल
हरित खेत में फसलों के संग उगती हो जैसे शैवाल
मै हिन्दू वो मुस्लिम तो क्या पर वो मेरा भाई है
इस भाई चारे के बीच मे पर संप्रदायिकता की खाई है
हम हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई भारत नया बनायेंगे
कैसे बने सपनो का भारत जब तक आतंकवाद नहीं मिटायेंगे
देश हमारा गावों का पर ग्रामोदय एक चुनौती है
भूंख मै कैसे बिलख - बिलख यह भारत माँ रोती है
ज्ञान ज्योति का दीप जलाकर पहले मिटाओ अशिक्षा
प्रहरी बन यदि करना चाहो देश की अपनी रक्षा
कहे रजनीश अभी वक्त है जन जन की ऑंखें खोलें
आजाद हुआ भारत तो क्या झूठी जयकार न बोलें
ऊंच नींच का भेद मिटाकर आओ मिल जुल गायें
नव भारत का कर निर्माण आजादी का जश्न मनाएं
*Photo by Rajneesh Shukla for BHARAT NAV NIRMAN (Evolving New India) only