आज भी भारतीय समाज महिलाओं की प्रधानता और उसके वर्चस्व को स्वीकार कर पाने में हिचकिचा रहा है । पुरुष और महिलाओं की समाज में बराबर की भागीदारी होनी चाहिए । जो सक्षम हो उसके हांथों में समाज की बागडोर देने में कैसा संकोच । मैंने स्वयं इस बात को व्यक्तिगत रूप से एहसास किया है कि यदि महिलाएं पारिवारिक मामलों में पुरुषों से एक कदम आंगे रहती हैं तो यह बात संकीर्ण मानसिकता के लोगों के गले नहीं उतरती । बराबरी का अधिकार एक स्वस्थ समाज के निर्माण में लाजिमी है । यदि घर की नारी को पारिवारिक निर्णयों में अपना मत रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाये और उनकी राय को बराबर महत्व किया जाये तो वो एक तरफा गलत निर्णयों का विरोध कर घर के अन्य सदस्यों को उनका अधिकार दिला सकती हैं । पंचायतों में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण की व्यवस्था तो ठीक है पर अधिकांशतः देखने में आया है कि महिलाएं सिर्फ औपचारिकता मात्र बनकर रह जाती हैं और उनके पीछे पुरुष वर्ग ही निर्णय लेता है । इस आरक्षण व्यवस्था का भले आज सार्थक लाभ न मिले और भले आज इसका दुरूपयोग भी हो पर दूरगामी परिणाम मिलेंगे । आरम्भ कमजोर हो सकता है पर इस कदम से आने वाले समय में समाज उनके महत्व को समझेगा । महिलाओं के प्रति सामाजिक नजरियें में बदलाव आएगा और सबसे महत्वपूर्ण बात महिलाएं स्वयम समाज में अपने महत्व और शक्ति के प्रति जागरूक बनेगीं ।
"रजनीश"
"रजनीश"
2 comments:
SC ST ko dene se acha hai ki mahila ko diya jaaye. par har reservation ki ek time limit honi chaiye. ab yadi 60 saal me bhi sc/st upar nahi aaye to unki galti hai 2 peedhiyan nikal gayi.
Rupesh,Rewa
yaha buraaee ye hai ki jo aaj kee jaroorat hai kal kee rajneeti ban jatee hai
yadi jarrorat ke hisab se parivartan hote rahen to sab theek chal sakta hai
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