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Wednesday, August 19, 2009

एक बात कहूँ


दोस्तों एक बात कहूँ
सोचता हूँ कैसे कहूँ
चलो बात की बात से कहता हूँ
एक बात ही दिल तोड़ देती है
एक बात ही दिल जोड़ देती है
अरे यह बात तो बात है,
एक बात ही जीवन मोड़ देती है

दोस्तों एक बात कहूँ
सोचता हूँ कैसे कहूँ
चलो बात की बात से कहता हूँ
बात निकलेगी तो फिर दूर तक जायेगी
बात न निकले तो फिर अपना पता पूछेगी
बात का मतलब हो या ना हो बात ही कहलाएगी
अरे यह बात तो बात है ,
बस एक बात ही तो याद रह जायेगी

दोस्तों एक बात कहूँ
सोचता हूँ कैसे कहूँ
चलो बात की बात से कहता हूँ
जीवन में कई बातो का आना होगा
एक वह बात और पीछे सारा ज़माना होगा
तुम ज़माने की बातो से मतलब ना रखना
बात कैसी भी हो हर हाल में खुश रहना


रचयिता:"रजनीश शुक्ला, रीवा (म. प्र.)"

8 comments:

Rupesh Pandey said...
This comment has been removed by the author.
Rupesh Pandey said...

I remember you gave me hand written version of this poem few months back, i have it safe in my collection, :-)

रचना गौड़ ’भारती’ said...

भई आपकी ये एक बात तो हमें बहुत पसन्द आयी। अब एक बात हमारी भी मानिए और झट्पट हमारा ब्लोग देखिए।

Vipin Behari Goyal said...

बहुत बढ़िया ...स्वागत है...

Kamlesh Sharma said...

nice....lge rho....

Sanjay Grover said...

हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.........
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं....

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan narayan

Unknown said...

दोस्तों एक बात कहू .....बहुत अच्छी कविता है !
मुझे बहुत पसंद आई !

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