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Monday, May 23, 2011
एक स्वतंत्र पंछी की तरह उड़ने की चाह है
रचयिता: श्री गोविन्द शर्मा जी
अतिथि लेखक
1st year, MSc Engg.,
Computer Science and Automation,
Indian Institute of Science,
Bangalore.
एक स्वतंत्र पंछी की तरह उड़ने की चाह है,
सारे बंधन काटकर दौड़ने की चाह है |
क्यूँ सामजिक बंदिशें, क्यूँ ये आडम्बर का माहौल?
इन सब से ऊपर उठकर जीने की चाह है ||
किसी नवजात शिशु की तरह, किलकारने की चाह है,
लगता था जो कभी स्थायी, उस बचपन में लौटने की चाह है |
क्यूँ साधारण-असाधारण भिन्न, क्यूँ फर्क इंसान-इंसान में?
सभी भेदों को मिटाकर सोचने की चाह है ||
एक सागर की तरह सब कुछ स्वीकारने की चाह है,
दो पल के लिए रूककर हल्का होने की चाह है |
क्यूँ दूसरों से ईर्ष्या, क्यूँ आग अहंकार की?
सबको एक परिवार में संजोने की चाह है ||
अंजान थे सच्चाई से, पर अपने आप में मगन थे,
बचपन में हम जो भी करते, सम्पूर्ण लगन से |
ना कोई छुपाव, न मन-मुटाव, न किसी से भेद-भाव,
आज फिर वही रवैय्या दोहराने की चाह है ||
सच्चाई से चलकर सफलता पाने की चाह है,
निष्काम सफलता की आशा करने की चाह है |
क्यूँ तुलना करूं दूसरों से अपनी, मेरी क्या मजाल है?
हर एक प्रतियोगिता में, कम-से-कम अपने आप से जीत पाने की चाह है ||
*Picture from:www.freeeaglepictures.com with thanks
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