संकलन कर्ता : दिनेश चंद्र वार्श्नेय
http://www.arthkaam.com/ के सौजन्य से साभार
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी -जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है, और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय में बोध कथा "कांच की बरनी और २ कप चाय" हमें याद आती है। दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक कांच के बरनी (जार) टेबल पर रखी और उसमे टेबल टेनिस की गेंदे डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक उसमे एक भी गेंद सामने की जगह नहीं बची। उन्होंने छात्रों से पूंछा क्या बरनी पूरी भर गयी ? हाँ आवाज़ आयी फिर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे -छोटे कंकर उसमे भरने शुरू किये , धीरे- धीरे बरनी को हिलाया तो काफी सारे कंकर उसमे जहाँ जगह खाली थी , समां गए, फिर से प्रोफ़ेसर साहेब ने पूंछ- क्या बरनी भर गयी, छात्रों ने एक बार फिर हाँ कहा। अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गयी। अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे, फिर प्रोफ़ेसर साहब ने पूंछा क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गयी है ना ? हाँ अब तो पूरी भर गयी सभी ने एक स्वर में कहा । सर ने टेबल के नीचे से चाय के २ कप निकाल कर उसमें की चाय जार में डाली चाय भी रेत के बीच में स्थित थोड़ी सी जगह में सोख ली गयी । प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज़ में समझाना शुरू किया इस कांच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो । टेबल टेनिस की गेंदे सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात अन्य जीवों की सहायता करना , परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य, और शौक हैं । छोटे-छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बड़ा मकान आदि है । रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव, झगडे हैं । अब यदि कांच की बरनी में तुमने सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिए जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिए होते, तो गेंद नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी । ठीक यही बात जीवन पर भी लागू होती है। यदि तुम छोटी छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा, मन के सुख के लिए क्या जरूरी है, ये तुम्हे तय करना है अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फेंको, मेडिकल चेकअप करवाओ, टेबल टेनिस की गेंदों की फ़िक्र पहले करो । वही महत्वपूर्ण है पहले तय करो की क्या जरूरी है ? बाकी सब तो रेत है। छात्र बड़े ध्यान से सुन रहे थे । अचानक एक ने पूंछा सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि चाय के दो कप क्या हैं? प्रोफ़ेसर मुस्कुराए और बोले मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यूं नहीं किया । इसका उत्तर यह है कि जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे लेकिन अपने ख़ास मित्र की साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेसा होनी चाहिए ।
*Photo by Rajneesh Shukla for Bharat Nav Nirman Only
No comments:
Post a Comment