लेखक: चुन्नीलाल
पैसा जीवन में एक संसाधन से ज्यादा कुछ भी नहीं । संसाधन जो जीवन में सहूलियत लाये । जिन्दगी को आसान बनाने में मदद करे । "पैसा होने से जिन्दगी आसान, खुशहाल और संजीवी होगी", यह दुनिया के सबसे बड़े भ्रमों में से एक है । पैसा जीवन नहीं है बल्कि जीवन में मददगार है । यह जीवन रूपी विशाल System का महज छोटा सा Tool है । लेकिन कई लोग इस तुच्छ चीज के पीछे जीवन रूपी सारे System का ही नाश कर बैठते हैं । जीवन एक रचना है जिसे कई रंगों का सोच - समझकर यथा उचित उपयोग कर सुन्दर बनाया जाता है । यदि हम जीवनरूपी इस खूबसूरत कृति को केवल पैसे रूपी रंग से बिना सोचे - समझे पोत दें तो अंत में कैसा भद्दा चित्र बनेगा, इसकी कल्पना मात्र से ही मन सिहिर उठता है । जीवन में अनुभव की बाद बुद्धजीवियों ने पैसे के महत्व को कुछ इस तरह से बताया है :
1)पैसा हाथ की मैल है, आता - जाता है ।
2)पैसा गया तो समझो कुछ नहीं गया, स्वास्थ गया तो समझो कुछ गया और यदि चरित्र चला गया तो समझो सब कुछ खो दिया ।
3)जीवन को खुशहाल बनाने के लिए पैसा कमाया जाता है, खुशियों को बेचकर पैसा नहीं कमाया जाता ।
कबीरदास जी ने तो अपने जीवन में पैसे को केवल यहीं तक स्थान दिया है:
सांई इतना दीजिये जा में कुटुम समाय
मैं भी भूँखा ना रहूँ , साधु ना भूँखा जाय
अर्थात हे भगवान् ! मुझे केवल इतना ही धन दीजिये कि जिससे मैं अपने परिवार का पालन पोषण भलीं - भांति कर सकूं । कभी मुझे भूंखे पेट ना सोना पड़े और यदि मेरे घर कभी कोई अतिथि आये तो उसे भूंखे पेट वापस ना जाना पड़े । कबीर के अनुसार इसके अतिरिक्त पैसे को उन्हें अपने जीवन में शामिल नहीं करना है । लेकिन जब पैसे को मानवीय मूल्यों से बढ़कर प्राथमिकता दी जाने लगे । जब पैसे के कारण मानवीय सम्बन्ध ख़तम कर दिए जाएँ तो समझना चाहिए कि ऐसा करने वाला जीवित होते हुए भी मृतक समान है । पैसे के सामने दम तोड़ रहे मानवीय संबंधों की घटना को उजागर किया है भारत नव निर्माण ( Evolving New India) के सहयोगी, सलाहकार और लेखक चुन्नीलाल जी ने अपने आलेख "भाइयों ने नहीं दिया, तो पत्नी ने दिया मुखाग्नि" के द्वारा । आशा करता हूँ कि पाठकों के लिए यह आलेख समाज का दर्पण सिद्ध होगा।
" रजनीश"
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