आजाद नहीं पर एक मुल्क थे भारत और ए पाकिस्तान
मुक्त धरा बस एक था सपना चाहे हिन्दू या मुसलमान
मिलजुल रहे दोनों समुदाय आजादी थी एक लड़ाई
एकजुट होकर डटे रहे तो स्वतंत्र रास्ट्र की संज्ञा पाई
जाति अलग हो धर्म अलग हो भेष-भूषा रहन-सहन अलग हो
मानव तो मानव ही होता देश अलग हो खान-पान अलग हो
मानव से मानव के विरोध का जन्मजात नही कोई आधार
पर सत्ता के लोभी जन करते मन में खड़ी अंतर की दीवार
ए तेरा वो मेरा का ही जाप हमेसा करते रहते
वैचारिक मतभेदों वाली जीभ ना रुकती कहते कहते
छोटी सी बात सुलझाने वाली बड़ा मुद्दा बन जाती है
बिना वजह और बिना बिचारे नफ़रत घर कर जाती है
सत्ता की रोटी की खातिर मन में आग लगाई जाती है
भले बुरे का भेद मिटाकर सत्ता की भूख मिटाई जाती है
भारत पाक की जेलों में हजारों एक दूसरे के नागरिक
मानवता से परे झेलते मानसिक शारीरिक कष्ट अनैतिक
कूटनीति की चालों पर कुछ जेलों से छोड़े जाते हैं
पर समय के जाते उसी तादात में फिर से पकड़े जाते हैं
सिग्नल पे जब लाल हो बत्ती तो रुकता हर गाड़ी वाला
रंग बिरंगी चिडियों को पकड़े पास में आता पिजड़े वाला
अभी आजाद करुँ मैं इनको बाबू जी दे दो इतने दाम
ए दुआएं देंगे तुमको सुधरेंगे सारे बिगड़े काम
कभी कोई बड़ा दिल वाला बातों में पड़ जाता है
पंछियों को आजाद कराके वो आंगे बढ़ जाता है
चिड़ीपकड़ के अपने शागिर्द फिर से जाल बिछाते हैं
छोड़े गए अधिकतर पंछी फिर से पकड़े जाते हैं
कहे रजनीश हम सब आपसी सदभाव ना भूलें
दिल में प्रेम बड़ा लाजिमी तो शरहद को भूलें
भारत-पाक में फर्क मिटाकर आओ मिलजुल गायें
अमन चैन का बिगुल बजाकर भारत नया बनाएं
"रचयिता - रजनीश शुक्ला, रीवा (म. प्र.)"
मुक्त धरा बस एक था सपना चाहे हिन्दू या मुसलमान
मिलजुल रहे दोनों समुदाय आजादी थी एक लड़ाई
एकजुट होकर डटे रहे तो स्वतंत्र रास्ट्र की संज्ञा पाई
जाति अलग हो धर्म अलग हो भेष-भूषा रहन-सहन अलग हो
मानव तो मानव ही होता देश अलग हो खान-पान अलग हो
मानव से मानव के विरोध का जन्मजात नही कोई आधार
पर सत्ता के लोभी जन करते मन में खड़ी अंतर की दीवार
ए तेरा वो मेरा का ही जाप हमेसा करते रहते
वैचारिक मतभेदों वाली जीभ ना रुकती कहते कहते
छोटी सी बात सुलझाने वाली बड़ा मुद्दा बन जाती है
बिना वजह और बिना बिचारे नफ़रत घर कर जाती है
सत्ता की रोटी की खातिर मन में आग लगाई जाती है
भले बुरे का भेद मिटाकर सत्ता की भूख मिटाई जाती है
भारत पाक की जेलों में हजारों एक दूसरे के नागरिक
मानवता से परे झेलते मानसिक शारीरिक कष्ट अनैतिक
कूटनीति की चालों पर कुछ जेलों से छोड़े जाते हैं
पर समय के जाते उसी तादात में फिर से पकड़े जाते हैं
सिग्नल पे जब लाल हो बत्ती तो रुकता हर गाड़ी वाला
रंग बिरंगी चिडियों को पकड़े पास में आता पिजड़े वाला
अभी आजाद करुँ मैं इनको बाबू जी दे दो इतने दाम
ए दुआएं देंगे तुमको सुधरेंगे सारे बिगड़े काम
कभी कोई बड़ा दिल वाला बातों में पड़ जाता है
पंछियों को आजाद कराके वो आंगे बढ़ जाता है
चिड़ीपकड़ के अपने शागिर्द फिर से जाल बिछाते हैं
छोड़े गए अधिकतर पंछी फिर से पकड़े जाते हैं
कहे रजनीश हम सब आपसी सदभाव ना भूलें
दिल में प्रेम बड़ा लाजिमी तो शरहद को भूलें
भारत-पाक में फर्क मिटाकर आओ मिलजुल गायें
अमन चैन का बिगुल बजाकर भारत नया बनाएं
"रचयिता - रजनीश शुक्ला, रीवा (म. प्र.)"
4 comments:
good one. I am still thinking how come a software engineer working in a multinational company gets some time to think about the problems being faced by his own country. very well written in own mother tongue this poem is well can be treated as eyes opener...good one rajneesh
सिग्नल पे जब लाल हो बत्ती तो रुकता हर गाड़ी वाला
रंग बिरंगी चिडियों को पकड़े पास में आता पिजड़े वाला
अभी आजाद करुँ मैं इनको बाबू जी दे दो इतने दाम
ए दुआएं देंगे तुमको सुधरेंगे सारे बिगड़े काम
कभी कोई बड़ा दिल वाला बातों में पड़ जाता है
पंछियों को आजाद कराके वो आंगे बढ़ जाता है
चिड़ीपकड़ के अपने शागिर्द फिर से जाल बिछाते हैं
छोड़े गए अधिकतर पंछी फिर से पकड़े जाते हैं
..बहुत गहरी बात कह गये हो।क्या तुम्हें मेरी "हम और वो" यादहै,स्कूल के समय वाली??कुछ वैसा ही विषय है
,विडंबना यह है कि हालात बद से बदतर हो गये हैं,२६/११ नज़दीक ही है,साल भर होने को आया,लोग भूलना भी शुरु कर चुके हैं,कोई परिणाम नहीं निकला,जनता ने समझदारी दिखाकर फिरसे उसी सरकार को मौका दिया,ताकि सामरिक बातचीत का ठोस हल निकाला जा सके,किंतु वही ढाक के तीन पात,क्या किया जाये?,ऐसे तनाव वाले माहौल में भारत दोस्ती का हाथ बढाये तो हर भारतीय ठगा सा महसूस करेगा,युद्ध कर दिया जाये तो पङोसी मुल्क के पास खोने को कुछ बचा नहीं,हमारा ही विकास अवरूद्ध हो जायेगा,हाथ पर हाथ धरे बैठ नहीं सकते,भारत ने बहुत विकास किया पिछले ६० सालों में,जबकि चार बङे युद्ध भी झेले,ऐसे में तो यही समझ आता है कि आगे बढते जायें,स्वयं को इतना सक्षम बना लिया जाये कि छोटे मोटे हमले हमें प्रभावित भी न कर पायें,फिर भी एक दूरगामी रणनीति बनाने की भी आवश्यकता है......क्या विचार है तुम्हारा इस विषय में??
Nice creation indeed!!
रूपेश बहुत सही बात कही है तुमने कि विकास के पथ पे आगे चलने के साथ साथ यह जरूरी है कि एक दूरगामी सोच को develop किया जाये । यह उसी तरह से तर्क सन्गत है जैसे की positive सोच के साथ अग्रसर तो होना ही है पर साथ मे पथ के negative काटो को नजरन्दाज नही किया जाना चाहिये । यह भी सम्भव नही कि हम अपनी सारी उर्जा केवल पडोसी के साथ सम्बन्ध बनाने मे जायज कर दे । अभी हाल ही मे मेरे एक मित्र ने मुझसे प्रश्न किया कि फिर इसका क्या उपाय है ? भारत को यदि विश्व के नक्से में एक महाशक्ति के रूप में अपनी पहचान स्थापित करनी है तो यह बहुत जरूरी है कि हम दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसी मुल्को के साथ राजनीतिक, आर्थिक वा मानवीय संबंधो को मजबूत करें | जब तक सौहार्द्रपूर्ण माहौल नहीं होगा हम अपनी ऊर्जा का एक बड़ा भाग आतन्कवाद से निबटने और कभी निश्कर्शों पे ना पहुचने वाली वार्तालाप में ही जायज करते रहेंगे | ऐसे में किसी भी रास्ट्र के लिए अपनी मूलभूत आवस्यक्ताओं पर ध्यान केन्द्रित कर पाना मुश्किल होता है |
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