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Sunday, August 23, 2009
अतीत
मैं अकिंचन करुँ निवेदन माँ शारदे आओ चिंतन में
भारतीय संस्कृति प्राचीनतम सबसे प्राचीन है भाषा संस्कृत
मिश्र रोमा यूनान का पतन पर हिंद संस्कृति अभी भी जीवित
वेदों में सब ज्ञान की बातें अपने वेदों पर हमको है मान
चीन को किसने सभ्य बनाया देकर उनको कपडो का ज्ञान
आर्यभट ने पहले सिखलाया गणित में शून्य बड़ा अनमोल
वराहमिहिर ने पहले बतलाया देखो यह पृथ्वी है गोल
आदिकाल से करते आये नौ ग्रहों की पूजा हम रोज
बाकी दुनिया वालो सुन लो बाद में की तुमने यह खोज
दुनिया में आयुर्वेद जो लाये वो थे अपने चरक महान
द्रुत करती सारी गणनाएं वैदिक गणित बड़ी आसान
अमृतसर में सोने का मंदिर सकल विश्व में भारत की शान
कोहिनूर नहीं साधारण हीरा अपितु जगत में भारत की आन
नालंदा और तक्षशिला पूरी दुनिया में थे जाने जाते
संपूर्ण विश्व से विद्यार्थी भारत में थे पढने आते
फाह्यान चीनी विद्यार्थी लिखे अद्वितीय भारत का वैभव
दुनिया तो दुनिया जैसी पर भारत एक अनोखा अनुभव
भारत एक सोने की चिडिया चन्द्रगुप्त का था जब शाशन
घरों में न तालों का प्रचलन देश में था इतना अनुशाशन
अतीत हमारा गौरव शाली जरूरी इसकी गरिमा का ज्ञान
कला और संस्कृति के दम से ही विश्व में है होती पहचान
कहे रजनीश अभी समय है हम अपना अस्तित्व न भूलें
अतीत हमारा गौरव शाली सब जन मिलकर बोलें
आज और कल का भेद भुलाकर आओ मिल जुल गायें
अतीत के गौरव को दुहराकर भारत नया बनायें
रचयिता:"रजनीश शुक्ला, रीवा(म. प्र।)"
*Photo by Dinesh Chandra Varshney for Bharat Nav Nirman Only
Wednesday, August 19, 2009
एक बात कहूँ
सोचता हूँ कैसे कहूँ
चलो बात की बात से कहता हूँ
एक बात ही दिल तोड़ देती है
एक बात ही दिल जोड़ देती है
अरे यह बात तो बात है,
एक बात ही जीवन मोड़ देती है
दोस्तों एक बात कहूँ
सोचता हूँ कैसे कहूँ
चलो बात की बात से कहता हूँ
बात निकलेगी तो फिर दूर तक जायेगी
बात न निकले तो फिर अपना पता पूछेगी
बात का मतलब हो या ना हो बात ही कहलाएगी
दोस्तों एक बात कहूँ
सोचता हूँ कैसे कहूँ
जीवन में कई बातो का आना होगा
एक वह बात और पीछे सारा ज़माना होगा
तुम ज़माने की बातो से मतलब ना रखना
बात कैसी भी हो हर हाल में खुश रहना
रचयिता:"रजनीश शुक्ला, रीवा (म. प्र.)"
Monday, August 17, 2009
अबोध
पशु पक्षी पावक पवन जन जन में बसते भगवन
जल थल नभ में सबका पालन प्रबल प्रकृति में रहे संतुलन
दशो दिशाओं उनका शाशन हम सब उनकी प्रजा समान
जो सब दिखता उनकी रचना बच्चे हैं उनका वरदान
भागम भाग न भागे जीवन तो हो जाये उथल पुथल
बेटे आज समय नहीं है कह लेना सब बाते कल
भावो का अम्बार तो क्या छोटी उसकी अभी उमर
बात वजह की पर बोले कैसे मन जो बैठा है डर
काम तो होगा नाम तो होगा न होगा यह बचपन पर
चमन में है रौनक जिनसे बुझने ना पायें तारे जमीं पर
छोटी उमर में जीना मुश्किल कर आया जिम्मेदारी बनकर
उचित नहीं फुर्सत हो जाना आवासीय विद्यालय भेजकर
पॉँच अंगुलियाँ नहीं बराबर पर महत्व कम नहीं रत्ती भर
हर बच्चा जन्म है लेता जन्मजात कुछ प्रतिभा लेकर
हर जन्मे को जिंदगी अपनी जीने का जन्मसिद्ध अधिकार
पर परम्परा परिवार नाम पर होता उनपर अत्याचार
मेरे पालक उपकार बड़ा हो जो पढ़ पाओ मेरा मन
मै तो हूँ मिट्टी कुम्हार की बनाओ गाँधी या वीरप्पन
जीवन तो जीवन न था मन में प्रतिशोध तो भारी है
बेटे अनुभव तो मेरा है पर अब यह तेरी बारी है
निज जीवन में जो हो न पाया बेटे के जीवन से आशा
मेरे अभिभावक मै अबोध हूँ समझो मेरे मन की भाषा
कहे रजनीश अभी है हम इनसे इनका समय न छीने
भविष्य देश का इनके हांथों दे जी भर इनको जीने
छोटे बड़े का भेद मिटाकर आओ मिल जुल गायें
पढ़ अबोध के मन की भाषा भारत नया बनाये
रचयिता:"रजनीश शुक्ला, रीवा (म. प्र.)"
*Photo by Rajneesh Shukla for Bharat Nav Nirman only
ग्रामोदय
कश्मीर से रामेश्वर तक फैला भारत मेरा पावन देश
भेष-भूसा रहन- सहन खान-पान विविधता विशेष
कलकल करती नटखट नदियाँ विस्तृत समतल धरा अपार
कश्मीर में है केशर की खेती तो बस्तर में वन का विस्तार
आर्यवर्त गावों का देश मिल जुल कर रहे सकल समुदाय
मेहनत से उगता है मोती खेती इसका मुख्य व्यवसाय
गाँव हमारे विश्व मंच पर कृषि प्रधान होने का कारण
यदि गाँव न होते कृषक न होते न होता जनता का पोषण
यदि गाँव में मिलती बिजली पानी और जीविका का साधन
पक्की होती कच्ची सड़कें तो निर्धन जन क्यूँ करें पलायन
कितने ही वादे किये गए नदी पे पुल पर बने नहीं
गिन चुनकर रिश्वत लेकर बने तो फिर वो टिके नहीं
वर्षो बीते शोषण में जीते तब आया पंचायती राज
अवसर धन की कर पहचान ग्रामजन करें स्वयं ही राज
अनपढ़ अनगढ़ बुझी बुझी सी है यह जनता लाचार
प्रबुद्ध प्रखर बन कैसे समझापाती अपने अधिकार
आन पड़ी विपदा बड़ी पर चिकित्सालय तो दूरी है
कैसे करें धन का उपाय तो वाहन भी मजबूरी है
गाँव के नन्हे मुन्हे बच्चे जब मीलों पैदल चलते हैं
तब जाकर शिक्षा के अक्षर उनके दामन पड़ते हैं
कहे रजनीश अभी वक़्त है हम अपना कर्त्तव्य न भूलें
जब जड़े हमारी गाँवो में तो थोडा समय निकालें
गाँव शहर का भेद मिटाकर आओ मिल जुल गायें
ग्रामोदय का बिगुल बजाकर भारत नया बनायें
रचयिता:"रजनीश शुक्ला, रीवा (म. प्र.)"
आजाद भारत
बीती निशा निरंतर निद्रा सोये थे फिरंगियों के भ्रम में
पुलकित जन नव रवि को नमन नव स्वपन मन चेतन नव
स्वशाषित आर्यवर्त में गूंज उठा स्वतंत्रता का स्वर नव
एकत्रित हुए रात दिन बना संविधान हुआ गणतंत्रता का गठन
जनहित में जनता द्वारा जनता के लिए जनता का शाशन
प्रशस्त हुआ प्रगति का पथ पर रह रह के उठे कई सवाल
हरित खेत में फसलों के संग उगती हो जैसे शैवाल
मै हिन्दू वो मुस्लिम तो क्या पर वो मेरा भाई है
इस भाई चारे के बीच मे पर संप्रदायिकता की खाई है
हम हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई भारत नया बनायेंगे
कैसे बने सपनो का भारत जब तक आतंकवाद नहीं मिटायेंगे
देश हमारा गावों का पर ग्रामोदय एक चुनौती है
भूंख मै कैसे बिलख - बिलख यह भारत माँ रोती है
ज्ञान ज्योति का दीप जलाकर पहले मिटाओ अशिक्षा
प्रहरी बन यदि करना चाहो देश की अपनी रक्षा
कहे रजनीश अभी वक्त है जन जन की ऑंखें खोलें
आजाद हुआ भारत तो क्या झूठी जयकार न बोलें
ऊंच नींच का भेद मिटाकर आओ मिल जुल गायें
नव भारत का कर निर्माण आजादी का जश्न मनाएं
*Photo by Rajneesh Shukla for BHARAT NAV NIRMAN (Evolving New India) only