Proud to be an Indian

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Wednesday, May 26, 2010

कालिदास का अंहकार


संकलन कर्ता: रूपेश पाण्डेय
अतिथि
लेखक,
भारत
नव निर्माण (Evolving New India)
महाकवि कालिदास अपने समय के महान विद्वान थे। उनके कंठ मे साक्षात सरस्वती का वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था। अपार यश,प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर एक बार कालिदास जी को अपनी विद्वत्ता का घमन्ड हो गया। उन्हें लगा की उन्होंने विश्व का सारा ग्यान प्राप्त कर लिया और अब सीखने को कुछ बाकि नहीं बचा। उनसे बड़ा ग्यानी संसार में कोई दूसरा नहीं। एक बार पङोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास महाराज विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोङे पर रवाना हुऐ। ग़र्मी का मौसम था, धूप काफी तेज़ और लगातार यात्रा से कालिदास जी को प्यास लग आयी। जंगल का रास्ता था और दूर तक कोई बस्ती दिखाई नहीं दे रही थी । थोङी तलाश करने पर उन्हें एक टूटी झोपङी दिखाई दी। पानी की आशा में वो उस ओर बढ चले।झोपङी के सामने एक कुँआ भी था,। कालिदास जी ने सोचा कि कोई झोपङी में हो तो उससे पानी देने का अनुरोध किया जाऐ । उसी समय झोपङी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली । बच्ची ने कुएं से पानी भरा और जाने लगी।कालिदास जी उसके पास जाकर बोले " बालिके!बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे"
बच्ची ने कहा- " आप कौन हैं? मैं आपको जानती भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए"
कालिदास को लगा कि मुझे कौन नहीं जानता मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता? किंतु फिर भी प्यास से बेहाल वो बोले-" बालिके अभी तुम छोटी हो इसलिये मुझे नहीं जानती। घर में कोई बङा हो तो उसको भेजो। वो मुझे देखते ही पहचान लेगा। मेरा बहुत नाम और सम्मान है। दूर-दूर तक, मैं बहुत बलवान व्यक्ति हूँ।"
कालिदास के बङबोले घमण्ड भरे वचनों से अप्रभावित बालिका बोली " आप असत्य कह रहें हैं, संसार में सिर्फ दो ही बलवाल हैं, और उन दोनो को मैं जानती हूँ, अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बातायें?"
थोङी देर सोचकर कालिदास बोले " मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो, मगर मुझे पानी पिला दो मेरा गला सूख रहा है।"
बालिका बोली " दो बलवान हैं 'अन्न' और 'जल' , भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बङे से बङे बलवान को भी झुका दें, देखिए तेज़ प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी।"
कलिदास चकित रह गये, लङकी का तर्क अकाट्य था, बङे से बङे विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने निरुत्तर खङे थे।
बालिका ने पुनः पूछा "सत्य बतायें, कौन हैं आप?" वो चलने की तैयारी में थी, कालिदास थोङे नम्र होकर बोले "बालिके! मैं बटोही हूँ"
मुस्कुराते हुए बच्ची बोली " आप अभी भी झूठ बोल रहे हैं, संसार में दो ही बटोही हैं, उन दोनों को मैं जानती हूँ, बताईये वो दोनों कौन हैं?" तेज़ प्यास ने पहले ही कालिदास जी की बुद्धि क्षीण कर दी थी, किंतु लाचार होकर उन्होंने फिर अनभिज्ञता व्यक्त कर दी। बच्ची बोली "आप स्वयं को बङा विद्वान बता रहे हैं और ये भी नहीं जानते? एक स्थान से दूसरे पर बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है, बटोही दो ही हैं, एक चंद्रमा और दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं, आप तो थक गये हैं, भूख प्यास से बेदम हो रहे हैं, आप कैसे बटोही हो सकते हैं"इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गयी।
अब तो कालिदास और भी दुखी हो गये। इतने अपमानित वो जीवन में कभी नहीं हुए। प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी। दिमाग़ चकरा रहा था। उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़ देखा। तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली। उसके हाथ में खाली मटका था। वो कुऐं से पानी भरने लगी। अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास बोले- " माते प्यास से मेरा बुरा हाल है , भर पेट पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा।"
बूढ़ी माँ बोलीं" बेटा मैं तुम्हे जानती नहीं, अपना परिचय दो मैं अवश्य पानी पिला दूँगी।"
"मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें"
" तुम मेहमान कैसे हो सकते हो? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और दूसरा यौवन, इन्हें जाने में समय नहीं लगता, सत्य बताओ कौन हो तुम?"
अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश कालिदास बोले " मैं सहनशील हूँ, पानी पिला दें"
"नहीं, सहनशील तो दो ही हैं, पहला धरती, पापी पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है, उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भण्डार देती है, दूसरा पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं, तुम सहनशील नहीं , सच बाताओ कौन हो?" कालिदास जी लगभग मूर्छा की स्थिती में आ गये, और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले " मैं हठी हूँ"
"फिर असत्य , हठी तो दो ही हैं, पहला नख और दूसरा केश , कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं, सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप?" पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके कालिदास ने कहा " फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ"
"नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो, मूर्ख दो ही हैं, पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिये ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है" कुछ बोल न सकने की स्थिती में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना करने लगे। " उठो वत्स" ये आवाज़ सुनकर जब कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहाँ खड़ी थी, कालि जी पुनः नतमस्तक हो गये। "शिक्षा से ग्यान आता है न कि अहंकार , तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिये मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिये ये स्वांग करना पड़ा" कालिदास को अपनी गलती समझ आयी और भरपेट पानी पीकर आगे चल पड़े।

Saturday, May 22, 2010

Life Is For Everyone -Life Is Good


S, Jaganathan
Guest Author,
Bharat Nav Nirman (Evolving New India)

Is this my Place??
Where I have landed in peace..
I am a tenant of this piece,
with a fixed period of lease..

We are called back,
for a new agreement.
may or may not be for the same piece,
with altogether a different settlement.

Some are called before the lease expiry,
as their agreement was initially temporary.
But their stay costs in currency of love,
once in loss, never can imagine the pain of above.

Agreement is nothing big,
as simple to spread.
Feeling of love,
Caring of pain,Sharing of bread.

We agree there..
Do we follow here??
Is it difficult to keep up...
Hence,relationships arebeing created.

Who are we to control others,
What are we controlled of?
When we can't control other's hunger,
then try only to control anger.

Smile gets back smile,
tears may not get tears..
He who owns us only hears,
with his magic touch everything smoothly sail.

Friendship is a form,
Parents show another,
Special person brings something more........LOVE

With this I say..
Yes this is " My Sweet Place".

Friday, May 21, 2010

10 Characteristics Of A Good Project


Written By: Rajneesh Shukla
1)Development From Scratch:
In a good project we have Business Requirement Documents (BRDs) not only for enhancement of the current version of program but also those which require development from scratch.
2) Multi Skilled:
From developer perspective a good project might require one primary skill but also provide a platform to enhance at least 2 secondary skills.
3)Throughput Oriented:
The primary thing is OQD: On Time Quality Deliverables. What time, Where and How are you doing are secondary things. This kind of flexibility is achieved by very good LOE:Level Of Estimation.
4)Complete Functional & Technical Exposure:
In a good project one team player might be developer for one BRD. QA (Tester) for the other one. Owner and responsible for end to end solution delivery for some other BRDs.
5)High Integrity:
A good project might have multiple programs running in parallel. But overall impression should be it's a single program having only one team. A member of the team is taking a lot of interest on activities of others in another team. One should be able to easily take roles and responsibilities of other as per requirement.
6) Transparency:
In a good project roles and responsibilities of one are not only limited to manager. But it should be very clear to every one in the team.
7)Regular Project Sync up Meetings:
Even 5 days in a week if required. It's a very effective way to maintain High Integrity & Transparency.
8)Quality One to One:
Manager is always open for one to one meeting with employee. Roles and responsibilities are distributed over months. In one to one meeting expectations and accomplishments are discussed for the current months rather than using generic words.
If due to some restrictions manager is not able to do some thing in employee favor, he should share clear reasons rather than blaming on employee. Manager is convincing very well, he will try to compensate it by some other means in upcoming days.
9)No Boundaries to Limit Capabilities:
Members are getting proper motivation and appreciation for initiative and decision making.
10) Quality Documentations:
BRDs, HLDs, LLDs, Unit test plan and cases, QA test plan and cases, UAT test-cases, Support Training Documents etc are created and maintained in proper and planned way.

Friday, May 14, 2010

महत्वपूर्ण है: ख़ास मित्र के साथ दो कप चाय


संकलन कर्ता : दिनेश चंद्र वार्श्नेय
http://www.arthkaam.com/ के सौजन्य से साभार
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी -जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है, और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय में बोध कथा "कांच की बरनी और कप चाय" हमें याद आती है। दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक कांच के बरनी (जार) टेबल पर रखी और उसमे टेबल टेनिस की गेंदे डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक उसमे एक भी गेंद सामने की जगह नहीं बची। उन्होंने छात्रों से पूंछा क्या बरनी पूरी भर गयी ? हाँ आवाज़ आयी फिर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे -छोटे कंकर उसमे भरने शुरू किये , धीरे- धीरे बरनी को हिलाया तो काफी सारे कंकर उसमे जहाँ जगह खाली थी , समां गए, फिर से प्रोफ़ेसर साहेब ने पूंछ- क्या बरनी भर गयी, छात्रों ने एक बार फिर हाँ कहा। अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गयी। अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे, फिर प्रोफ़ेसर साहब ने पूंछा क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गयी है ना ? हाँ अब तो पूरी भर गयी सभी ने एक स्वर में कहा सर ने टेबल के नीचे से चाय के कप निकाल कर उसमें की चाय जार में डाली चाय भी रेत के बीच में स्थित थोड़ी सी जगह में सोख ली गयी प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज़ में समझाना शुरू किया इस कांच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो टेबल टेनिस की गेंदे सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात अन्य जीवों की सहायता करना , परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य, और शौक हैं छोटे-छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बड़ा मकान आदि है रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव, झगडे हैं अब यदि कांच की बरनी में तुमने सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिए जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिए होते, तो गेंद नहीं भर पाते, रेत जरूर सकती थी ठीक यही बात जीवन पर भी लागू होती है। यदि तुम छोटी छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा, मन के सुख के लिए क्या जरूरी है, ये तुम्हे तय करना है अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फेंको, मेडिकल चेकअप करवाओ, टेबल टेनिस की गेंदों की फ़िक्र पहले करो वही महत्वपूर्ण है पहले तय करो की क्या जरूरी है ? बाकी सब तो रेत है। छात्र बड़े ध्यान से सुन रहे थे अचानक एक ने पूंछा सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि चाय के दो कप क्या हैं? प्रोफ़ेसर मुस्कुराए और बोले मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यूं नहीं किया इसका उत्तर यह है कि जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे लेकिन अपने ख़ास मित्र की साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेसा होनी चाहिए
*Photo by Rajneesh Shukla for Bharat Nav Nirman Only
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