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Thursday, October 1, 2009

अब पंचायतों में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण


आज भी भारतीय समाज महिलाओं की प्रधानता और उसके वर्चस्व को स्वीकार कर पाने में हिचकिचा रहा है । पुरुष और महिलाओं की समाज में बराबर की भागीदारी होनी चाहिए । जो सक्षम हो उसके हांथों में समाज की बागडोर देने में कैसा संकोच । मैंने स्वयं इस बात को व्यक्तिगत रूप से एहसास किया है कि यदि महिलाएं पारिवारिक मामलों में पुरुषों से एक कदम आंगे रहती हैं तो यह बात संकीर्ण मानसिकता के लोगों के गले नहीं उतरती । बराबरी का अधिकार एक स्वस्थ समाज के निर्माण में लाजिमी है । यदि घर की नारी को पारिवारिक निर्णयों में अपना मत रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाये और उनकी राय को बराबर महत्व किया जाये तो वो एक तरफा गलत निर्णयों का विरोध कर घर के अन्य सदस्यों को उनका अधिकार दिला सकती हैं । पंचायतों में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण की व्यवस्था तो ठीक है पर अधिकांशतः देखने में आया है कि महिलाएं सिर्फ औपचारिकता मात्र बनकर रह जाती हैं और उनके पीछे पुरुष वर्ग ही निर्णय लेता है । इस आरक्षण व्यवस्था का भले आज सार्थक लाभ न मिले और भले आज इसका दुरूपयोग भी हो पर दूरगामी परिणाम मिलेंगे । आरम्भ कमजोर हो सकता है पर इस कदम से आने वाले समय में समाज उनके महत्व को समझेगा । महिलाओं के प्रति सामाजिक नजरियें में बदलाव आएगा और सबसे महत्वपूर्ण बात महिलाएं स्वयम समाज में अपने महत्व और शक्ति के प्रति जागरूक बनेगीं ।
"रजनीश"
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