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Sunday, February 14, 2010

बिछड़ने-मिलने का नाम ही जीवन


लेखक : रजनीश शुक्ला

जीवन एक नदी की तरह है जो लगातार बहता रहता है। इस जीवन रूपी नदी के सफ़र में समय के साथ नई-नई चुनौतियां, नए-नए लोग नए-नए घाट के रूप में आते रहते हैं। चुनौती भरा एक सत्र बीत चुका था और एक नए सत्र की सुरुआत में एक नया प्रोजेक्ट शुरू किया गया । एक नया चेहरा साथ में काम करते- करते जिन्दगी का हिस्सा बन गया । मिल जुल कर मन लगाकर काम करने से सारी मुश्किलें आसान होती गयीं । जरूरत के हिसाब से सुबह जल्दी आना और काम के पूरा होने भर ही शाम को घर जाना आम बात हो चुकी थी । यदि हमारे घरों में कुछ विशेष पकाया जाता तो हम एक डब्बे में एक दूसरे के लिए लेकर आते थे । अब हम केवल ऑफिस का काम ही नहीं बल्कि काम के दौरान मिलने वाले छोटे मोटे तनाव या खुशी को भी आपस में बांटते थे । यदि छुट्टी के दिन भी काम की प्राथमिकता की वजह से मैं कभी ऑफिस जाने का प्लान बनाता तो वह भी आने से कभी न नहीं कहता था। Analysis और Design ख़त्म हो चुकी थी। अगले सप्ताह से Construction शुरू होने वाला था। मैं Team Outing के कुछ पोस्टर्स बनाने में जुटा था। तभी पता चला की मेरे दूसरे साथी को अगले सप्ताह Release date की मेल आयी है। वह इस Company में एक Contract Employee के रूप में था । उसे एक सप्ताह में किसी नए Organization में एक नया काम ढूंढना था। उसके चेहरे के पल - पल बदलते भाव मेरे दिल में चित्रित होते गए । वह इन बदलते भावों से अपने दर्द को छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहा था । अगले दिन एक बड़े Resort में एक बड़ी Team पार्टी चलती रही । लोग music की धुन पे थिरक रहे थे। कुछ लोग मुस्कुरा कर आपस में बातें करते नजर आ रहे थे। मैं भी उनमें से अलग ना था। लेकिन मुस्कराहट के पीछे छिपे दर्द को समझ पाने वाला वहां कोई ना था । सच में दूर से रंगीन दिखने वाली दुनिया भी दर्द से परे नहीं।

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